कठिन से कठिन परिस्थितियों में घबराता नहीं है बल्कि समझदारी से शांतिपूर्वक उन परिस्थितियों का सामना करता है और चेहरे पर मुस्कान बनाए रखता है।
मनुष्य के जीवन में परिपक्वता आने पर मनुष्य हर परिस्थिति में मुस्कुराना सीख जाता है।
परिपक्वता मनुष्य को भविष्य की उज्जवलता को बनाए रखने में सहायक सिद्ध होती है।
परिपक्व मनुष्य अपने परिवार को अच्छे से संभाल सकता है।
परिपक्व मनुष्य अपने ध्येय पर पूर्ण ध्यान देते हैं। किसी अन्य से उलझने में अपना समय गँवाते नहीं हैं।
परिपक्व मनुष्य दूसरों को बदलने की बजाए स्वयं में निखार लाता है।
परिपक्वता सच्चे रिश्तों की पहचान कराती है। कुछ लोग और वस्तुएँ त्याग कर जीवन को खुशहाल बनाया जा सकता है।
किसी से प्रतिशोध न लेना एक परिपक्व मस्तिष्क की सोच होती है। वह प्रतिशोध की बजाय उससे दूर होता है अपना कीमती समय व्यर्थ नहीं करता है।
परिपक्वता मनुष्य में स्वयं के प्रति विश्वास को मजबूती देती है। परिपक्व मनुष्य खुद पर विश्वास करता है साथ ही ईश्वरीय आस्था में भी विश्वास रखता है। स्वयं और ईश्वर के प्रति विश्वास मनुष्य को सुरक्षा प्रदान करते हैं।
जीवन के फैसले लेना हो या अपने कार्य को अंजाम देना हो परिपक्व इंसान सोच समझकर गंभीरता से निर्णय लेते हैं।
परिपक्व मनुष्य में विनम्रता के गुण दिखाई देते हैं। वह कठिन परिस्थितियों में विचलित नहीं होते हैं। उनका व्यवहार सहजता, नम्रता से पूर्ण होता है जो जीवन की परिस्थितियों के अच्छे बुरे संदर्भ से वाकिफ होते है। उसमें हर मनुष्य को समझने की समझ विकसित होती है।
दूसरों पर निर्भर रहने वाला मनुष्य परिपक्व मनुष्य नहीं कहलाता है। आत्मनिर्भर मनुष्य में ही परिपक्वता का गुण विद्यमान होता है।
एक परिपक्व मनुष्य अपनी ज़िम्मेदारियों से घबराता नहीं है बल्कि अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाता है।