वाक़िफ़ कहाँ ज़माना हमारी उड़ान से वो और थे जो हार गए आसमान से ।
“तजुर्बा बता रहा हूँ दोस्त दर्द, ग़म, डर जो भी है बस तेरे अंदर है खुद के बनाए पिंजरे से निकल के देख
तू भी एक सिकंदर है”
जो “हो गया” उसे सोचा नहीं करते जो “मिल गया” उसे खोया नहीं करते सफ़लता भी उन्हें हासिल होती है जो “वक्त और हालात” पर रोया नहीं करते
घमंड शराब जैसा
होता है साहब,
खुद को छोड़कर सबको पता
चलता है कि
इसको चढ़ गयी है
मंजिल उन्हीं को मिलती है,
जिनके सपनो में जान होती है,
पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है
तू रख यकॉन … तेरी हार बस अपने इरादों पर ”तेरे हौसलों से तो बड़ी नहीं होगी।
अगर ख्वाईश कुछ अलग करने की है तो दिल और दिमाग के बीच बगावत लाजमी है ।
बुरा वक्त एक
ऐसी तिजोरी है जहां से सफलता के
हथियार मिलते हैं
“जो मंजिल को पाने की चाहत रखते है वो समंदरो पर भी पत्थर के पुल बना देते है”